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Monday, December 8, 2008

भांग विद मंजीत- एकटा आर लोकगीत


हे.. लटर-पटर दूनू टांग करै,
जे नहिं नबका भांग करै,

हे.. लटर-पटर दूनू टांग करै,
जे नहिं नबका भांग करै।।


आ रसगुल्ला इमहर सं आ,

इमहर सं आ, उमहर सँ आ,

सीधे मुंह में गुड़कल आ

एक सेर छाल्ही आ दू टा रसगुल्ला

एतबे टा मन मांग करै।

हे.. लटर-पटर दूनू टांग करै,
जे नहिं नबका भांग करै।।


Thursday, September 25, 2008

मैथिली लोकगीत

सावन-भादों मे बलमुआ हो चुबैये बंगला
सावन-भादों मे...!
दसे रुपैया मोरा ससुर के कमाई
हो हो, गहना गढ़एब की छाबायेब बंगला
सावन-भादों मे...! ]
पांचे रुपैया मोरा भैन्सुर के कमाई
हो हो, चुनरी रंगायब की छाबायेब बंगला
सावन-भादों मे...!
दुइये रुपैया मोरा देवर के कमाई
हो हो, चोलिया सियायेब की छाबायेब बंगला
सावन-भादों मे...!
एके रुपैया मोरा ननादोई के कमाई
हो हो, टिकुली मंगायेब की छाबायेब बंगला
सावन-भादों मे...!
एके अठन्नी मोरा पिया के कमाई
हो हो, खिलिया मंगाएब की छाबायेब बंगला
सावन-भादों मे...!